“✍️ सुशील कुमार सुमन”**
“सागर तट पर चमत्कारी, पुरी नगरी अनुपम प्यारी,
जहाँ प्रभु जगन्नाथ बसे हैं, भक्ति-सागर की धारा भारी।
नीलाचल पर्वत के चरणों में, मंदिर महिमा से भर जाता,
जग के नाथ को नमन करें सब, रथ महोत्सव हर्ष लुटाता।
नहीं वहाँ भेद कोई रहता, न जाति, न कुल, न वर्ण की दीवार,
सबके लिए खुले हैं द्वार, सब पाते जग में उद्धार।
श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्रा – तीनों की अनूठी पूजा,
भाई-बहन का यह एकत्र रूप, देता प्रेम की अमर दूजा।”
*“रथयात्रा – महाप्रभु का पर्व”*
जग के नाथ जब रथ पर चढ़ते, गूंजे हर दिशा, ‘हरि बोल’,
रस्सी खींचते भक्त सभी, पुलकित होते हृदय अनमोल।
गुंडिचा को चलें सनाथ, मौसी के घर की ओर कदम,
प्रभु स्वयं आते भक्तों के बीच, यह है लीला का मधुर संगम।
नंदीघोष में प्रभु विराजे, तालध्वज में बलभद्र महान,
दर्पदलन में सुभद्रा देवी, तीनों बनें कृपा का वरदान।
स्वर्णबेश की शोभा निराली, प्रभु के रूप में सूरज चमके,
हेरा पंचमी की लीला में, लक्ष्मी जी का अनुराग दमके।”
*“मंदिर – एक दिव्य चमत्कार”*
“ध्वज लहराए विपरीत दिशा में, विज्ञान भी आश्चर्यचकित,
सागर की गूंज मंद हो जाए, जैसे प्रकृति भी बन जाए मित।
सुदर्शन चक्र जहाँ से देखो, एक ही ओर दिखे प्रभु का भाव,
प्रसाद न घटे, न बढ़े कभी, करुणा का यह परम प्रभाव।
मंदिर नहीं, चेतना का स्वर है, अद्भुत विधान और दर्शन,
श्रद्धा, भक्ति और वैज्ञानिक चमत्कार का बना अनुपम समर्पण।
दर्शन हो बाहर से भी, तो पुण्य का मिल जाए पावन योग,
क्योंकि प्रभु भाव में बसते हैं, रूप-सीमा को छोड़ दें लोग।
*“प्रेम की परंपरा”*
“विश्ववसु की पूजा थी पहले, नीलमाधव को वो पूजता था,
राजा इन्द्रद्युम्न ने तब पाया, और मंदिर का निर्माण किया था।
दयिती समाज आज भी निभाए, सेवा का वह नित्य कर्म,
शबरों की भक्ति को पाकर ही, जगन्नाथ ने किया आत्मार्पण धर्म।”
*“महाप्रसाद – अन्न नहीं, अन्नब्रह्म”*
“छः सौ रसोइयों की रचना, मिट्टी के पात्रों में पका भोग,
सभी जातियों का एक थाल में खाना, यही जगन्नाथ का संजोग।
प्रसाद में नहीं कोई भेद, अमीरी-गरीबी नहीं कोई देख,
यहाँ प्रेम है सबसे बड़ा धर्म, और सेवा है सच्चा लेख।
*“सेवा, समर्पण और समता”*
“न कोई ऊँच, न कोई नीच, प्रभु के दर पर सब समान,
सेवा में ही धर्म समाया, यही है मानव का पहचाना।
भक्ति में बड़प्पन नहीं, विनम्रता में ही ईश्वर मिलता है,
प्रभु को पाने का मार्ग है — पावन मन, न कि बस मंदिरों का झांसा।
मीरा, सूरदास, चैतन्य जैसे, भक्तों ने प्रभु को पाया था,
ओडिसी नृत्य, पटचित्र, संगीत — सब में प्रभु का नाम समाया था।
जगन्नाथ कला में बसते हैं, संस्कृति की चेतना बन जाते,
उनकी छवि से सजती भारत की आत्मा,
काव्य में स्वर मुस्काते।
*“आज की पुकार – जय नहीं, चेतना बनो”*
“आज जब धर्म बना व्यापार, और भक्ति बन गई मंच की बात,
तब “जय जगन्नाथ” की पुकार कहे — छोड़ो पाखंडों की जात।
सेवा करो, न कि प्रदर्शन, प्रेम करो, न कि प्रचार,
सत्य बोलो, नीति अपनाओ, यही प्रभु का असली उपहार।
ISKCON ने जग में फैलाया, जगन्नाथ का अमर संदेश,
विदेशों में रथ चला आज, हर देश में कृष्ण का वेश।
हर जुबां पर “हरे कृष्ण” बोले, हर गली में राधे नाम,
जगन्नाथ की महिमा बनी — प्रेम, भक्ति और विश्वधर्म का काम।
*“युवा भीतर रचो रथ”*
“युवा जब फंसे स्क्रीन-जाल में, और जीवन हो अधीर,
तब जय जगन्नाथ की पुकार कहे — भीतर जगा लो नीर।
मोबाइल नहीं, मन मंदिर बने, प्रभु का स्मरण रटते रहो,
प्रेम बाँटो, सेवा करो, और सत्य के रथ पर चढ़ते रहो।”
जय जगन्नाथ — नारा नहीं, चेतना की यह आग है,
रथ नहीं बस सड़क पर चले, मन में भी उसकी छाप है।
जो भी पुकारे ‘जय जगन्नाथ’, वह बन जाए सेवक महान,
सत्य, अहिंसा और करुणा से, रोशन हो जग का हर इंसान।
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*🙏🚩जय जगन्नाथ 🚩🙏*
हरि बोल! हरि बोल!
सत्य बोलो, सेवा करो, प्रेम बाँटो — यही है जगन्नाथ जी की वाणी।
जय हो उस प्रभु की जो रथ पर चढ़कर हमारे दिलों में उतर आते हैं।
*🚩🙏 जय श्री जगन्नाथ 🙏🚩*
*“रथयात्रा – महाप्रभु का पर्व की आप सभी को ढेर सारी बधाई एवं शुभकामनाएँ।”*
“जय श्री जगन्नाथ की कृपा आप पर सदा बनी रहे,
आपका जीवन प्रेम, भक्ति और सेवा से परिपूर्ण हो।”
*हरि बोल! हरि बोल!*
जय जगन्नाथ! 🚩🙏
कवि: *“सुशील कुमार सुमन”*
अध्यक्ष, आईओए
सेल आईएसपी बर्नपुर