“वो एक नाम नहीं, एक एहसास है,
हर दिल के सुरों में जिसकी सांस है।
कभी हँसी, कभी आंसू, कभी मस्ती, कभी दर्द,
उनकी आवाज़ में बसता था पूरा एक पर्व।
मिट्टी की महक और आसमान की उड़ान,
दोनों को समेटे थे उनके गान।
कोयल की कूक में, पपीहे की पुकार में,
उनके स्वर मिल जाते थे हर बहार में।
“रूप तेरा मस्ताना”, “मेरे सपनों की रानी”,
हर गीत में बसी थी प्रेम कहानी।
कभी “ज़िंदगी एक सफ़र है सुहाना” गाकर,
जीवन को मस्ती की राह दिखा जाते थे वे।
न शास्त्रीय बंधन, न किसी राग की दीवार,
फिर भी उनके गीत बनते थे अमर उपहार।
दिल से निकला हर सुर सीधे दिल में उतरता,
उनका गाना, सुनना, जीना – सब कला का मंदिर लगता।
फिल्मों के पर्दे पर भी उनका था जलवा,
मजाकिया अंदाज़ और अभिनय का अलग ही हलवा।
“चलती का नाम गाड़ी” में मस्ती की चाल,
“पड़ोसन” में संगीत का बेमिसाल कमाल।
पर हँसी के पीछे छुपा था एक संवेदनशील मन,
जिसने प्रेम, विरह और जीवन के रंगों को गाया अनगिन।
उनकी आवाज़ में था जादू, जो वक्त को थमा देता,
हर दिल में एक नया सपना जगा देता।
कभी लगते वो एक बंजारे की तरह,
कभी साधु की तरह, कभी शरारती बच्चे की तरह।
उन्होंने दिखाया कि संगीत सिर्फ़ पेशा नहीं,
यह आत्मा की भाषा है, जो सीमाएँ नहीं मानती।
आज भी जब रात की खामोशी में कोई रेडियो बजे,
तो लगता है किशोर दा मुस्कुरा कर गीत कह रहे हैं सजे।
उनकी हँसी, उनकी तान, उनकी मस्ती का आलम,
हर पीढ़ी में गूंजता रहेगा उनका नाम।
किशोर दा, आप सिर्फ़ गायक नहीं, एक युग हैं,
संगीत के इतिहास में सदा अमिट अमर सुगंध हैं।
आपके गीत हमारे दिल की धड़कन बन गए,
हर खुशी, हर ग़म के हमसफ़र बन गए।
आज भी “ओ मेरे दिल के चैन” सुनकर,
मन को मिल जाता है एक अनकहा सुकून।
और “कभी अलविदा न कहना” सुनकर,
आँखें भर लाती हैं यादों का जुनून।
आपने सिखाया कि गीत सिर्फ़ शब्द और सुर नहीं,
यह जीवन की गहराई में उतरने की कला है सही।
आपकी आवाज़ में बसी है वो शक्ति, वो भक्ति, वो मुक्ति,
जो हमें जीवन से जोड़ती है, और अमरता से मिलाती है।
सलाम आपको, किशोर दा —
आपकी धुनें यूँ ही सदियों तक गूंजती रहेंगी।
सुरों का जादू, दिलों का पियारा,
हर गीत में बसा है उनका नज़ारा।
*किशोर दा* की आवाज़ अमर रहे सदा,
*“जन्मदिन”* पर उनको शत-शत प्रणाम हमारा।”
*✍️ “सुशील कुमार सुमन”*
अध्यक्ष, आईओए
सेल आईएसपी बर्नपुर