Dastak Jo Pahunchey Har Ghar Tak

Share on facebook
Share on twitter
Share on whatsapp
Share on email

*”दो जून की रोटी”*

Share on facebook
Share on twitter
Share on whatsapp
Share on email
ASANSOL DASTAK ONLINE DESK

ASANSOL DASTAK ONLINE DESK

Oplus_16777216

*सेवा में, पेशे ख़िदमत है, 2 जून की रोटी।।*
*किस्मत वालों को नसीब होती है !!!..*
*न्यायधीश का अनोखा दंड 🙏🙏*

“कोलकाता के हाई कोर्ट में एक अनोखा मामला आया। यह मामला एक छोटे लड़के से जुड़ा था, जो चोरी के आरोप में पकड़ा गया था। लेकिन इस मामले में न्याय की जो परिभाषा उभरी, उसने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया।

कोलकाता में एक पंद्रह साल का लड़का था, जो एक होटल से सब्जी और रोटी चुराने की कोशिश कर रहा था। चोरी करते हुए वह पकड़ा गया, और गार्ड की गिरफ्त से भागने की कोशिश में  होटल के स्टोर का एक शेल्फ भी टूट गया। उसे तुरंत पुलिस के हवाले कर दिया गया।

*हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई चल रही थी। न्यायधीश ने लड़के से पूछा, “क्या तुमने सचमुच सब्जी और रोटी का पैकेट चुराया था?” लड़का शर्मिंदा होकर नीचे झुकते हुए बोला, “जी हां।”*

न्यायधीश ने सवाल किया, “क्यों?”

लड़का थोड़ा सकुचाते हुए बोला, “मुझे ज़रूरत थी।”

न्यायधीश ने कहा, “तुम इसे खरीद क्यों नहीं सकते थे?”

लड़का फिर बोला, “मेरे पास पैसे नहीं थे।”

न्यायधीश ने अगला सवाल किया, “क्या तुमने घर वालों से पैसे नहीं मांगे?”

लड़का बोला, “मेरे घर में केवल मेरी मां है, जो बीमार है और बेरोज़गार है। सब्जी और रोटी भी उसी के लिए चुराई थी।”

न्यायधीश ने पूछा, “क्या तुम कुछ काम नहीं करते?”

लड़का बोला, “मैं एक कार वॉश में काम करता था, लेकिन अपनी मां की देखभाल के लिए एक दिन की छुट्टी ली थी, तो मुझे निकाल दिया गया।”

न्यायधीश ने फिर सवाल किया, “तुमने किसी से मदद क्यों नहीं मांगी?”

लड़का बोला, “मैं सुबह से घर से बाहर था, लगभग पचास लोगों के पास गया, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। तब मैंने ये कदम उठाया।”

इस तरह लड़के से सवाल-जवाब खत्म हुए और न्यायधीश ने फैसला सुनाने की तैयारी शुरू की। उन्होंने कहा, “चोरी और विशेष रूप से सब्जी और रोटी की चोरी एक बेहद शर्मनाक अपराध है। लेकिन हम सभी इसके लिए जिम्मेदार हैं।”

फिर उन्होंने अदालत में मौजूद सभी लोगों की ओर देखा और कहा, “यहां मौजूद हर शख़्स, मुझ सहित, हम सभी इस अपराध में शामिल हैं, क्योंकि हम एक ऐसे समाज में रहते हैं, जहां एक बच्चा भूखा है और उसे अपनी जरूरत पूरी करने के लिए चोरी करनी पड़ती है।”

न्यायधीश ने फिर कहा, “इसलिए, मैं अदालत में मौजूद हर एक व्यक्ति पर दस-दस रुपये का जुर्माना लगाता हूं। इस जुर्माने को बिना दिए कोई भी यहां से बाहर नहीं जा सकेगा।” यह कहकर न्यायधीश ने अपनी जेब से दस रुपये निकालकर रख दिए और फिर पेन उठाया।

इसके बाद उन्होंने कहा, “मैं  होटल पर दस हजार रुपये का जुर्माना भी लगाता हूं क्योंकि उसने इस भूखे बच्चे से इंसानियत नहीं दिखाई और उसे पुलिस के हवाले कर दिया।”

“अगर चौबीस घंटे में यह जुर्माना नहीं भरा गया, तो कोर्ट होटल को सील करने का आदेश देगी।”

*न्यायधीश ने फिर कहा, “इस जुर्माने की पूरी राशि इस लड़के को दी जाएगी, और हम अदालत इस लड़के से माफी मांगते हैं।”*

*फैसला सुनने के बाद, कोर्ट में मौजूद लोगों की आंखों से आंसू बहने लगे। लड़का भी हिचकियां लेते हुए बार-बार न्यायधीश को देख रहा था*। उसकी आंखों में भी आंसू थे। वह झुका हुआ था, लेकिन उसकी आत्मा को कहीं न कहीं शांति मिल रही थी।

न्यायधीश अपनी आंखों में आंसू छिपाते हुए कोर्ट से बाहर निकल गए। यह एक अजीब सा दृश्य था, क्योंकि यह मामला सिर्फ एक चोरी का नहीं, बल्कि एक समाज के उस दर्द का था, जहां एक बच्चा भूख से तड़पते हुए चोरी करने को मजबूर होता है।

क्या हमारा समाज, सिस्टम और अदालत इस तरह के फैसलों के लिए तैयार हैं? क्या हम उन बच्चों की मदद कर रहे हैं, जिन्हें सिर्फ दो जून की रोटी चाहिए होती है?

*यह सोचने की बात है। चाणक्य ने कहा था, “यदि कोई भूखा व्यक्ति रोटी चोरी करता पकड़ा जाए तो उस देश के लोगों को शर्म आनी चाहिए।” क्या हम इस संदेश को समझ पा रहे हैं?*

*यह कहानी हमें यह समझाती है कि समाज में बदलाव की जरूरत है। अगर हमें अपने देश और समाज को सही दिशा में आगे बढ़ाना है, तो हमें अपनी सोच और नजरिए को बदलने की जरूरत है। यह सिर्फ एक लड़के का मामला नहीं था, यह उस समाज का था, जिसे हमें बेहतर बनाने की जिम्मेदारी निभानी है।*

याद रखिए, अगर हमें किसी की मदद करनी है, तो हमें रोटियां नहीं चुरानी चाहिए, बल्कि उनकी भूख को समझना चाहिए और सही मदद करनी चाहिए।

*“लेखक: सुशील कुमार सुमन”*
अध्यक्ष, आईओए
सेल आईएसपी बर्नपुर