“आज का समय जब चारों ओर धर्म, जाति, वर्ग और भाषा के नाम पर विभाजन की राजनीति गहराई से पैर पसार रही है, जब समाज में संवेदनाएं कुंद होती जा रही हैं, जब साहित्य से सरोकार कम होता जा रहा है – ऐसे समय में बार-बार मुंशी प्रेमचंद याद आते हैं। नहीं, केवल इसलिए नहीं कि वे हिंदी-उर्दू के महान लेखक थे, बल्कि इसलिए कि उन्होंने भारतीय आत्मा की सच्ची तस्वीर शब्दों में उतारी थी — *“एक ऐसा भारत जो इंसानियत को मज़हब और जाति से ऊपर रखता है।”*
प्रेमचंद का साहित्य गंगा-जमुनी तहज़ीब की अमर मिसाल है। वे जितने हिंदी के लेखक थे, उतने ही उर्दू के शायर भी।
उनकी कहानियाँ, जैसे ‘ईदगाह’ और ‘रामलीला’, केवल भावनात्मक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि भारतीय सामाजिक ताने-बाने का जीवंत चित्रण हैं। *“ईदगाह में हामिद अपनी इच्छाओं का गला घोंटकर दादी के लिए चिमटा लाता है” — यह केवल प्रेम नहीं, संवेदना का चरम रूप है। रामलीला में साम्प्रदायिक सद्भाव की झलक मिलती है, “जहां मज़हब नहीं, मोहब्बत और मेल-मिलाप की जीत होती है।”*
मुंशी प्रेमचंद की लेखनी केवल समाज का आईना नहीं थी, वह क्रांति की मशाल भी थी। जून 1908 में जब उनका पहला कहानी संग्रह ‘सोज़-ए-वतन’ छपा, तो उसमें देशप्रेम और बलिदान की ऐसी कहानियाँ थीं जिनसे ब्रिटिश हुकूमत काँप उठी। अंग्रेज कलेक्टर ने राजद्रोह मानते हुए इसकी सभी प्रतियाँ जला दीं, लेकिन प्रेमचंद झुके नहीं — नवाब राय और धनपत राय से आगे बढ़कर वे ‘प्रेमचंद’ बने और क़लम की ताक़त से लड़ते रहे।
उनकी कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’ की अंतिम पंक्ति —
*“खून का वह आख़िरी कतरा जो वतन की हिफ़ाज़त में गिरे, दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ है”* —
आज भी नसों में रग-रग में देशभक्ति की आग भर देती है।
‘यही मेरी मातृभूमि है’ कहानी की शुरुआती पंक्तियाँ एक देशभक्त के जज़्बे की गूंज हैं —
*“अत्याचारी के अत्याचार और कानून की कठोरताएं मुझसे जो चाहे करा सकती हैं, मगर मेरी प्यारी मातृभूमि मुझसे नहीं छुड़ा सकतीं…”*
यह प्रेमचंद की लेखनी की ताक़त थी, जिसने एक पूरे युग को जगाया, झकझोरा और दिशा दी।
साहित्य की इस विराट चेतना को जब भारतीय सिनेमा के महान निर्देशक सत्यजीत रे ने समझा, तो उन्होंने अपनी पहली हिंदी फ़िल्म के लिए प्रेमचंद की ही कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ को चुना। यह कहानी केवल नवाबों की विलासिता नहीं, इतिहास के निर्णायक मोड़ को दर्शाती है। हॉलीवुड के महान निर्देशक मार्टिन स्कॉर्सेसी (“Gangs of New York” Fame Martin Scorsese) ने इस फ़िल्म के बारे में कहा था –
*“यह फ़िल्म भारतीय इतिहास में जबरदस्त बदलाव और रे के व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण को दर्शाती है। इसे देखते हुए महसूस होता है कि उस समय को जीना कितना त्रासदीपूर्ण रहा होगा।”*
*लेकिन उस महान फिल्म के पीछे जो सच्चा रचनाकार था, वह थे — प्रेमचंद।*
आज जब साहित्य बाजार और विचारधाराओं के बीच झूल रहा है, प्रेमचंद इसलिए भी याद आते हैं क्योंकि उन्होंने हमें सिखाया कि
*“साहित्यकार अपने देशकाल से प्रभावित होता है।”*
और जैसा कि लेखक अमृतलाल नागर ने कहा —
*“प्रेमचंद ने हमें स्वाभिमान से लिखना सिखाया।”*
उनकी कहानियाँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी तब थीं — क्योंकि उन्होंने इंसान को इंसान बनाने की बात की, भाषा को चेतना से जोड़ा, और समाज को आत्ममंथन की राह दिखाई।
प्रेमचंद को याद करना इतिहास को याद करना नहीं, बल्कि अपने वर्तमान और भविष्य को दिशा देना है।
*उनकी जयंती पर हम केवल श्रद्धांजलि न दें, बल्कि यह संकल्प लें कि हम उनकी लेखन-धारा को ज़िंदा रखें* —
*जहां मज़हब से ऊपर इंसान हो,*
*जहां विकास के केंद्र में संवेदना हो,*
और जहां साहित्य केवल मनोरंजन नहीं, समाज परिवर्तन का औजार हो।
*प्रेमचंद जी को शत-शत नमन।*
सादर,
🙏🙏🙏🌹
*सुशील कुमार सुमन*
President, IOA
SAIL ISP, Burnpur