“सुनो, यह पुकार है…”*
सुनो आवाम की उन कातर चीत्कारों को,
जो क्षमा माँगती हैं इस युग से
नैसर्गिक प्रेम को बाँटने के अपराध में।
वह धरती का रुदन, वह जल की थरथराहट—
चेतावनी बन कर गूंज रही है:
*“कब मिलेगी हमें आज़ादी?”*
*“गुरुदेव की वाणी…”*
कहते थे ‘कविगुरु’ —
धैर्य रखो, संयम धरो,
तन-मन से लड़ो
अंतरमन को निर्मल करो,
उज्ज्वल बनो, निर्भय बनो।
जागो, बढ़ो, उठो—
फिर मिलेगी आज़ादी!
*“आत्म समर्पण का आह्वान…”*
हे नाथ! अब तो स्वीकारो मुझे,
इस बार न लौटो मौन बनकर।
हर बार “आज़ादी-आज़ादी” जपते हो,
पर छूते नहीं जीवन की देहरी।
जो दिन तेरे बिना गुजरे,
अब उन्हें मिट्टी में मिल जाने दो।
तेरी ज्योति से जीवन ज्योतित हो,
मैं जागूँ अब निरंतर।
‘विश्वकवि’ कहते थे—
माँ-बहनों की चीखें भी…
फिर दिलाएंगी आज़ादी!
*“माँ का समर्पण…”*
सह के बच्चों के दर्द,
हर पल मुस्कान का दीप जलाती है।
अपनी इच्छाओं को तिलांजलि दे
बच्चों को सँवारती है।
उम्र कब खिसक गई—
ना भनक लगी, ना शिकायत।
ऐसे ही तप और त्याग से
फिर मिलेगी आज़ादी!
*“वीणा की तान…”*
जब विश्व सो रहा,
अंधकार था गगन में,
किसने झंकृत किए मेरी वीणा के तार?
नींद चुराकर, सपना दिखाकर
उठ बैठी मैं, खोजने लगी उन दिव्य चरणों को
जो आज़ादी के मतवाले थे—
जिनकी तपस्या से
हमें मिली आज़ादी!
*“और अब फिर से…”*
आज फिर वह पुकार है
फिर वह आह्वान है
फिर वह तप की दरकार है
फिर कोई गाँधी, कोई नेताजी
कोई सुब्रह्मण्यम, कोई सरोजिनी
आने को तैयार हैं
अगर हम जागें,
तो निश्चय ही…
*फिर मिलेगी आज़ादी!*
“गुरुदेव की वाणी में बसी थी भारत माँ की बात,
शब्दों से रचे उन्होंने प्रेम, शांति और सौगात।
रवींद्र जयंती पर करें हम उनका मान,
जग को दिखाया जिसने आज़ादी का पहचान।”
*“कवि: सुशील कुमार सुमन”*
अध्यक्ष, आईओए
सेल आईएसपी बर्नपुर