“गर्मी की छुट्टियाँ कभी भारतीय परिवारों में एक उत्सव की तरह होती थीं। जब स्कूल के दरवाजे बंद होते थे, तब बच्चों के लिए नाना-नानी, दादा-दादी के पास जाने का समय शुरू होता था। वहां सिर्फ घर के बने स्वादिष्ट व्यंजन ही नहीं, बल्कि अनसुनी कहानियाँ, जीवन के अनुभव, और पारिवारिक प्यार की सौगात मिलती थी। मामा-मामी या मौसी के साथ बिताए दिन, खेत-खलिहानों में खेलना, और परिवार के साथ किसी पहाड़ी या समुद्री इलाके की यात्रा, ये सब गर्मियों का हिस्सा थे। लेकिन आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी ने न केवल जीवन की गति बदली है, बल्कि रिश्तों की अहमियत भी कहीं धुंधली पड़ती जा रही है। इस बदलते परिदृश्य में एक नई सोच ने जन्म लिया है — “समर कैंप्स”।”
*“एक नई परंपरा: अवसरों से भरे समर कैंप्स”*
आज भारत के शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में समर कैंप्स तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। अभिभावकों की कोशिश रहती है कि उनके बच्चे इस लम्बी छुट्टी में कुछ ऐसा करें जो उन्हें “फ्यूचर रेडी” बनाए। इसलिए बच्चों को रोबोटिक्स, डांस, कोडिंग, पर्सनालिटी डेवलपमेंट, स्पोर्ट्स, योगा, पब्लिक स्पीकिंग जैसी गतिविधियों में शामिल कराया जा रहा है। निःसंदेह, ये कैंप्स बच्चों को स्कूल की सख्त पाठ्यक्रम सीमाओं से बाहर निकलकर कुछ नया सीखने का मौका देते हैं। रचनात्मकता, आत्मविश्वास, जिज्ञासा, और सामाजिक कौशल के विकास में ये सहायक साबित हो सकते हैं।
खासकर स्क्रीन एडिक्शन के इस युग में, जब मोबाइल और टैबलेट बच्चों के सबसे करीबी दोस्त बन चुके हैं, समर कैंप्स एक रचनात्मक और सक्रिय विकल्प प्रस्तुत करते हैं। बच्चों को टीम वर्क, नेतृत्व, संवाद कौशल, और जीवन के व्यावहारिक अनुभव मिलते हैं। कई बच्चों को इन कैंप्स के माध्यम से अपनी छिपी प्रतिभाओं को पहचानने और जीवन भर के लिए दोस्त बनाने का अवसर मिलता है।
*“व्यस्त माता-पिता के लिए वरदान”*
“आज अधिकांश शहरी परिवार न्यूक्लियर हो चुके हैं, और माता-पिता दोनों कार्यरत होते हैं। ऐसे में समर कैंप्स एक सुरक्षित और सक्रिय स्थान प्रदान करते हैं, जहां बच्चे दिनभर व्यस्त रहते हैं और कुछ नया सीखते हैं। माता-पिता के लिए यह मानसिक सुकून की बात है कि उनका बच्चा सुरक्षित वातावरण में, देखरेख में रहकर उपयोगी गतिविधियों में हिस्सा ले रहा है। ”
*“लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं”*
जहाँ समर कैंप्स बच्चों के समग्र विकास का साधन बन सकते हैं, वहीं इनसे जुड़ी कुछ चिंताएँ भी हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
1. *बचपन का बाजारीकरण*
“कई अभिभावक अपने बच्चों को एक के बाद एक कई समर कैंप्स में भेज देते हैं — सुबह योग, दोपहर डांस, शाम को कोडिंग। छुट्टियों का असली उद्देश्य, जो विश्राम, मौज-मस्ती और आत्म-अन्वेषण था, वह एक और “शैक्षणिक दौड़” में बदल जाता है। यह दबाव कई बार बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डालता है।”
2. *गुणवत्ता और सुरक्षा की चिंता*
“हर समर कैंप समान रूप से सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण नहीं होता। कई बार आयोजक प्रशिक्षित नहीं होते, जगह में पर्याप्त स्वच्छता या प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था नहीं होती। खासकर छोटे शहरों में यह समस्या गंभीर हो सकती है, जहां किसी भी नियामक संस्था की निगरानी नहीं होती।”
3. *आर्थिक असमानता की गहराई*
“समर कैंप्स अब भी अधिकांशतः मध्यम और उच्च वर्ग तक ही सीमित हैं। महंगे शुल्क, स्थान की दूरी, और संसाधनों की कमी के कारण गरीब तबके के बच्चे इनसे वंचित रह जाते हैं। यह असमानता समाज में और भी गहराई से जड़ें जमा सकती है — एक वर्ग तकनीक और कला में पारंगत होता जाएगा, जबकि दूसरा वर्ग प्राथमिक सुविधाओं से भी वंचित रह जाएगा।”
*“समाधान की दिशा में कदम”*
“समर कैंप्स का सही उपयोग तभी होगा जब अभिभावक और समाज इसे संतुलित नजरिए से देखें। माता-पिता को यह समझना होगा कि हर समय बच्चे को “किसी कोर्स” में लगाना जरूरी नहीं। कभी-कभी खुली हवा में पतंग उड़ाना, पेड़ पर चढ़ना, मिट्टी में खेलना और कहानियाँ सुनना भी सीखने के अनुभव होते हैं।
सरकार और स्थानीय निकायों को चाहिए कि वे सामुदायिक समर कैंप्स की व्यवस्था करें जो सभी वर्गों के बच्चों के लिए सुलभ हों। सरकारी स्कूलों, पंचायत भवनों, और सार्वजनिक स्थलों को इस कार्य के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है।
*“गर्मी की छुट्टियाँ — आनंद और आत्म-अन्वेषण का समय”*
समर कैंप्स एक महान पहल हैं यदि उनका उद्देश्य सही हो, योजना संतुलित हो और दृष्टिकोण समावेशी हो। लेकिन हमें यह ध्यान रखना होगा कि गर्मी की छुट्टियाँ सिर्फ “सीखने” का समय नहीं, बल्कि “जीने” का समय भी हैं। बच्चों को अपनी कल्पनाओं की उड़ान भरने दीजिए, उन्हें परिवार के साथ बंधन में फिर से जुड़ने दीजिए, और उन्हें अपनी छुट्टियों को अपनी तरह से जीने का अवसर दीजिए।
कहीं ऐसा न हो कि हम गर्मी की छुट्टियों को भी एक और प्रतिस्पर्धा में बदल दें। आइए, इस मौसम को बनाएं सृजन, खोज और खुशियों का उत्सव — न कि थकान, दबाव और समय की जद्दोजहद का कारण।
*“समर कैंप्स हों बच्चों के सपनों की उड़ान का मंच — न कि नए बोझ का नाम।”*
*“लेखक: सुशील कुमार सुमन”*
अध्यक्ष, आईओए
सेल आईएसपी बर्नपुर