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*””युवा – आदर्शों की आवाज़, राजभाषा के स्वर्ण जयन्ती वर्ष में”*

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ASANSOL DASTAK ONLINE DESK

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“आज का दिन आईएसपी बर्नपुर के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा, जब राजभाषा का स्वर्ण जयन्ती कार्यक्रम पूरे उल्लास, गरिमा और रचनात्मक ऊर्जा के साथ आयोजित हुआ। यह केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि भाषा, साहित्य और संस्कृति के प्रति हमारे समर्पण का प्रतीक था। इस विशेष अवसर पर हमारे बीच उपस्थित रहे विशिष्ट अतिथि श्री संजीव सर, जिन्होंने न केवल इस संस्थान को वर्षों तक अपनी सेवाएं दीं, बल्कि हिंदी साहित्य को भी अपने लेखन से समृद्ध किया है।

*” श्री संजीव जी का साहित्यिक योगदान”:*

साहित्य अकादमी पुरस्कार-2023 से सम्मानित श्री संजीव जी की चर्चित कृति “मुझे पहचानो” समकालीन हिंदी उपन्यासों में एक मील का पत्थर है। यह उपन्यास एक दलित महिला के संघर्षों, उसके आत्मसम्मान और सामंती सोच से टकराव की गाथा है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है। उन्होंने समाज के उस वर्ग को स्वर दिया है, जिसे इतिहास और वर्तमान दोनों ने अक्सर हाशिये पर रखा।

*श्री संजीव  जी* की उपस्थिति ने इस समारोह को एक नई ऊंचाई दी। उनके आशीर्वचनों और साहित्यिक दृष्टिकोण ने युवाओं को प्रेरणा दी कि साहित्य केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का सशक्त औजार है।

*“गौरवशाली मंच और विशिष्ट उपस्थिति”:*

इस ऐतिहासिक दिन को और भी भव्यता मिली जब हमारे मुख्य अतिथि Honorary ED Works तथा विशिष्ट अतिथि ED Finance, CGM I/C HR, ED Works Growth (Kulti), CGM MM, CGM HR और अन्य सम्माननीय सीजीएम्स उपस्थित रहे। इनके साथ हमारे आदरणीय राजभाषा अधिकारी श्री सी. एन. पाठक जी की गरिमामयी उपस्थिति ने इस आयोजन को और अधिक गरिमा प्रदान की।

इन सभी महानुभावों की उपस्थिति में मेरे द्वारा रचित काव्य संग्रह “युवा और ‘सुमन’…की दुनिया” का विमोचन हुआ। यह मेरे लिए केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि भाषा और युवा चेतना के प्रति मेरी प्रतिबद्धता का प्रतीक है।

*“मीडिया, विद्यार्थियों और सहकर्मियों का योगदान’:*

इस आयोजन को सफल बनाने में मीडिया प्रतिनिधियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने न केवल कार्यक्रम को कवर किया, बल्कि इसके संदेश को जनमानस तक पहुंचाने का कार्य किया। साथ ही, स्कूल के विद्यार्थियों, वरिष्ठ अधिकारियों और मेरे प्रिय सहयोगियों की उपस्थिति ने इस क्षण को अविस्मरणीय बना दिया।

आप सभी को दिल से धन्यवाद – आपकी उपस्थिति, सहयोग और शुभकामनाएँ मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

युवा और ‘सुमन’.. की दुनिया सिर्फ एक काव्य संग्रह नहीं है, यह एक विचारधारा है – भारत के युवाओं को उनकी पहचान, शक्ति और जिम्मेदारियों से अवगत कराने का माध्यम।

यह संग्रह उन महापुरुषों की प्रेरणाओं का संगम है जिन्होंने भारत की आत्मा को परिभाषित किया – मर्यादा पुरुषोत्तम राम से लेकर योगेश्वर श्रीकृष्ण, बुद्ध, महावीर, गांधी, अंबेडकर, भगत सिंह, कलाम और विवेकानंद तक।

*“यह संग्रह उन युवाओं के लिए है:”*

-जो सपने देखने का साहस रखते हैं,
-जो असफलताओं से डरते नहीं,
-जो सवाल करते हैं और जवाब खोजते हैं,
-जो इतिहास से सीखते हैं और भविष्य गढ़ते हैं।

*“युवाः एक युगदृष्टा” – भावों की अभिव्यक्ति..*

“युवा है रामायण सा, आदर्शों का प्रकाश,
उर्मिला-सी निष्ठा में, रखे संयम की आश।
महाभारत की गूंज में, वो अर्जुन का धनुष थामे,
गीता के हर श्लोक में, जीवन सच्चा जानें।

इतिहास का नायक बन, वो उम्मीद जगाए,
नव निर्माण के संकल्प से, हर अंधेरा मिटाए।
वो सिंधु घाटी से गुप्तों तक, संस्कृति को सींचे,
बुद्ध, महावीर, गांधी की राहों पर चल कर रीते।

‘सुमन’ की लेखनी में, उसके सपनों की बात है,
युवा ही भारत का भविष्य, उसकी सबसे बड़ी सौगात है।”

*“संग्रह की अंतर्निहित गहराई:”*

इस संग्रह में इतिहास, दर्शन, संस्कृति और आधुनिकता के बीच संतुलन को दर्शाया गया है। इसमें वैदिक युग से लेकर आधुनिक भारत तक की यात्रा है, जिसमें युवा शक्ति के विभिन्न रूपों को उकेरा गया है:

*“युवा और गीता: जहाँ कर्म, ज्ञान और भक्ति का त्रिवेणी संगम है।”*

*“युवा और इतिहास: सिंधु घाटी, मौर्य, गुप्त, मराठा और स्वतंत्रता संग्राम से युवा शक्ति का योगदान।”*

*“युवा और साहित्य: कबीर, तुलसी, प्रेमचंद, दिनकर, निराला जैसे साहित्यकारों के माध्यम से युवाओं को प्रेरणा।’*

*“क्यों आवश्यक है यह संग्रह?”*

आज जब युवा तकनीक की दुनिया में उलझते जा रहे हैं, तब उन्हें उनकी जड़ों, मूल्यों और आत्मबोध की ओर लौटाना आवश्यक है। यह संग्रह इसी दिशा में एक प्रयास है, जो उन्हें प्रेरित करता है कि वे:

-केवल नौकरी और सफलता के पीछे न भागें,
-बल्कि समाज, राष्ट्र और मानवता के लिए कुछ करें,
-अपने भीतर के राम, अर्जुन, विवेकानंद और कलाम को पहचानें।

*“संकल्प, प्रेरणा और श्रद्धा:”*

*यह रचना भगवान शिव के पावन नाम में, मेरे पूज्य पिताजी स्व. श्री सत्यनारायण पंजियारा और माताजी स्व. श्रीमती सुशीला देवी की स्मृति में समर्पित है।*

वे मेरी प्रेरणा रहे, जिन्होंने परीकथाओं और विचारों की शक्ति से मेरे मन में विचारशीलता और साहित्य के प्रति प्रेम उत्पन्न किया। यह संग्रह उन सभी स्वप्नदर्शियों को समर्पित है जो अपने विचारों से समाज को एक नई दिशा देना चाहते हैं।

*“युवा और ‘सुमन’…की दुनिया”* एक साहित्यिक आंदोलन है – जो विचारों को जन्म देता है, प्रश्न करता है, प्रेरणा देता है और अंततः निर्माण करता है। यह संग्रह राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका को नई दृष्टि से प्रस्तुत करता है।

*आज के स्वर्ण जयन्ती समारोह की सफलता और काव्य संग्रह विमोचन मेरे लिए एक स्वप्न के साकार होने जैसा है। मैं पुनः आप सभी का आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने इसे संभव बनाया।*

जय हिंद!
जय राजभाषा!
जय युवा शक्ति!

*✍️ “सुशील कुमार सुमन”*
अध्यक्ष, आईओए सेल,
आईएसपी बर्नपुर