“और क्या अहद-ए-वफ़ा होते हैं,
लोग मिलते हैं, फिर जुदा होते हैं।
कुछ पल की संगत, कुछ बातों का जादू,
फिर खामोशियों में सदा होते हैं।
कब बिछड़ जाए हमसफ़र ही तो है,
कब बदल जाए इक नज़र ही तो है।
जिन पर जान-ओ-दिल निसार हो जाए,
वो भी अक्सर बेखबर ही तो है।
वो अल्फ़ाज़, जो छू जाएं रूह को,
वो नज़्में, जो दर्द बयां करती हैं,
वो गीत, जो हर दिल का सच बन जाएं,
आपकी कलम से ही तो जन्म लेती हैं।
संवेदना का रंगीन इंद्रजाल जो बुनते हैं,
सादगी में गहराई के मोती चुनते हैं,
हर शेर में एक ज़माना बसता है,
हर गीत में एक कारवां चलता है।
आपकी लेखनी, जैसे बारिश की बूँदें,
हर दिल की प्यास को चुपचाप सींच जाए,
आनंद बख़्शी साहब, आप केवल शायर नहीं,
हर युग के दिल की धड़कन बन जाए।
आज जन्मदिवस पर आपको सादर प्रणाम,
इस कविता में समर्पित है स्नेह और सलाम।
आपकी यादें रहेंगी ज़िंदा सदा,
जैसे महकता रहे चिराग़ हर दिशा।”
❤️🙏🏻
— सादर,
*“सुशील कुमार सुमन”*
अध्यक्ष, आई.ओ.ए.
सेल आई.एस.पी., बर्नपुर..