उड़ान का सपना जब भारत में नया था,
तब एक साहसी पुरुष उसका पहला पंख बना था।
नाम था उनका जे.आर.डी. टाटा,
हौसलों से भरा, स्वप्नों का रखवाला।
सन उन्नीस सौ उन्तीस (1929) की वह गौरवशाली घड़ी,
जब मिला उन्हें पायलट लाइसेंस, गर्व से भरी झड़ी।
ना कोई नक्शा, ना दिशा की लकीर,
फिर भी उड़ चला भारत का पहला पंखों वाला वीर।
गगन से पूछो, वो दिन कैसा था,
जब पहली बार किसी भारतीय ने पंख फैलाया था।
ना डर था, ना संशय की बात,
बस उड़ान थी, और भारत की नई सौगात।
हवा से बातें करने वाले वो पहले भारतीय बने,
राष्ट्र के हर युवा को सपनों की ऊँचाई सिखा गए वे।
आज भी लाइसेंस की वह कॉपी,
कहती है कहानी – जुनून की, जिद की, और ऊँची सोच की।
टाटा केवल उद्योग नहीं, प्रेरणा का नाम है,
हर भारतीय के हृदय में उनका मुकाम है।
वो पायलट नहीं सिर्फ़ विमान के,
वो थे स्वप्नों के, साहस के, और भारत के सम्मान के।
नमन है उस उड़ान को, नमन है उस नाम को,
जे.आर.डी. टाटा – भारत के पहले पायलट,
जो आज भी उड़ानों के आसमान में अमर हैं।”
कवि: *“सुशील कुमार सुमन”*
अध्यक्ष, IOA
SAIL ISP Burnpur