*— सौजन्य: नरेश अग्रवाल, आसनसोल*
4 जुलाई का दिन भारतीय इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि है — यह वह दिन है जब राष्ट्र को दिशा देने वाले महापुरुष, स्वामी विवेकानंद, इस नश्वर संसार को अलविदा कह गए। मात्र 39 वर्ष की अल्पायु में उनका शरीर भले ही विलीन हो गया, लेकिन उनके विचार और आदर्श आज भी करोड़ों युवाओं के पथ-प्रदर्शक बने हुए हैं।
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनका मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वे बचपन से ही ज्ञान की तलाश में रहते थे। रामकृष्ण परमहंस के सान्निध्य में उन्हें जीवन की आध्यात्मिक दिशा मिली, और आगे चलकर उन्होंने भारत को उसकी आत्मा से परिचित कराया।
भारत की चेतना को जगाने वाले ऋषि
विवेकानंद ने अपने ओजस्वी विचारों से न केवल भारत को बल्कि पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति और वेदांत के गौरव से परिचित कराया। वर्ष 1893 में शिकागो धर्म संसद में दिया गया उनका भाषण आज भी प्रेरणा का अमूल्य स्रोत है। जब उन्होंने “माई ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका” कहकर संबोधन शुरू किया, तो सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा — यह एक भारतीय संन्यासी की आध्यात्मिक शक्ति का विश्व को पहला साक्षात्कार था।
युवा शक्ति के प्रेरणास्त्रोत
स्वामी विवेकानंद का विश्वास था कि भारत का भविष्य उसकी युवा शक्ति पर निर्भर है। वे युवाओं को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप से सशक्त बनाने की प्रेरणा देते थे। उनका यह कथन आज भी यथार्थ लगता है — “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।”
धर्म और विज्ञान का संगम
स्वामी विवेकानंद आधुनिकता के विरोधी नहीं थे। वे धर्म और विज्ञान, पूर्व और पश्चिम — दोनों के श्रेष्ठ तत्वों का समन्वय चाहते थे। उनका सपना एक ऐसे भारत का था जो अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ा हो, लेकिन विश्व मंच पर भी आत्मविश्वास के साथ खड़ा हो।
पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि
4 जुलाई 1902 को, बेलूर मठ में ध्यानमग्न अवस्था में स्वामी विवेकानंद ने अपनी नश्वर देह का परित्याग किया। यह अवश्य कहा जा सकता है कि वे समय से पूर्व चले गए, परंतु उनका जीवन और दर्शन आज भी अनगिनत दिलों को प्रेरणा देता है।
उनकी पुण्यतिथि पर हम उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं और संकल्प लेते हैं कि उनके बताए मार्ग — सेवा, साधना और राष्ट्रभक्ति — को अपने जीवन में अपनाएँगे।
“स्वामी विवेकानंद, आप अमर हैं — आपके विचार, आपकी दृष्टि और आपकी ऊर्जा आज भी जीवित है।”