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“हर बेटी में है शक्ति !..”

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ASANSOL DASTAK ONLINE DESK

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“हर बेटी में है शक्ति” — यह वाक्य मात्र कोई शब्दों का संयोजन नहीं है, बल्कि एक ऐसी जीवंत सच्चाई है, जिसे बार-बार भारत की बेटियों ने सिद्ध किया है। आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसी बेटी की, जिसने अपने साहस, परिश्रम और अडिग संकल्प से इतिहास रच दिया — शक्ति दुबे।
28 वर्षीय शक्ति दुबे ने पांचवीं कोशिश में, वह भी तब जब असफलताओं का लंबा साया उनके सिर पर था, यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 2024 में अखिल भारतीय प्रथम स्थान (AIR-1) हासिल कर समूचे भारतवर्ष को गौरवान्वित कर दिया।

यह सफलता मात्र एक परीक्षा उत्तीर्ण करने की बात नहीं है — यह लाखों बेटियों के दिल में विश्वास, आत्मबल और सपनों को निखारने की प्रेरणा का एक महानतम उदाहरण है।

शक्ति दुबे का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (प्रयाग) में हुआ।
साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में पली-बढ़ी शक्ति को शुरू से ही पढ़ाई का अत्यधिक शौक था।
उनके पिता देवेंद्र कुमार दुबे, उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग में कार्यरत हैं, जबकि माता प्रेमा दुबे एक कुशल गृहिणी हैं।
परिवार में सादगी, अनुशासन और शिक्षा का विशेष वातावरण था, जिसने शक्ति के व्यक्तित्व को आकार दिया।

बचपन से ही शक्ति जिज्ञासु प्रवृत्ति की थीं। हर प्रश्न का उत्तर जानने की ललक, हर विषय को गहराई से समझने की आदत, और हर चुनौती को स्वीकार करने का साहस उनमें बचपन से ही दिखता था।

शैक्षणिक यात्रा: प्रयाग से बनारस तक

शक्ति दुबे ने अपनी स्नातक (ग्रेजुएशन) की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बायोकेमिस्ट्री विषय में पूरी की।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, जिसे एक समय में ‘पूर्व का ऑक्सफोर्ड’ कहा जाता था, ने देश को कई महान नेता, अधिकारी और विद्वान दिए हैं। शक्ति दुबे ने उसी परंपरा को आगे बढ़ाया।

इसके बाद उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से बायोकेमिस्ट्री में परास्नातक (पोस्ट ग्रेजुएशन) किया।
शक्ति ने सिविल सेवा की तैयारी के लिए राजनीति विज्ञान और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को वैकल्पिक विषय के रूप में चुना।
यह चयन उनके विश्लेषणात्मक सोच और समसामयिक घटनाओं में गहरी रुचि का प्रमाण था।

यूपीएससी का कठिन सफर: संघर्ष की असली कहानी

यूपीएससी परीक्षा भारत की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक मानी जाती है।
लेकिन शक्ति दुबे के लिए यह परीक्षा केवल एक लक्ष्य नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व की परीक्षा बन गई थी।

पहले तीन प्रयासों में वे प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) भी पास नहीं कर पाईं।

चौथे प्रयास में इंटरव्यू तक पहुँचीं, लेकिन फाइनल लिस्ट से मात्र 12 अंक पीछे रह गईं।
असफलता की कड़वी घूंट के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी।

*एक इंटरव्यू में शक्ति ने कहा:*

*“मैंने अपने जीवन का सबसे कठिन समय उस दिन महसूस किया जब मैं 12 अंकों से कट गई। लगा कि सब खत्म हो गया। कई दिनों तक सो नहीं पाई, कई बार लगा कि छोड़ दूँ… लेकिन फिर सोचती थी कि इतना सफर तय कर लिया है, अब रुकना कायरता होगी।”*

यही जज़्बा उन्हें भीड़ से अलग बनाता है।
जहाँ कई लोग पहली असफलता में हार मान लेते हैं, शक्ति ने पाँचवें प्रयास में पूरी दुनिया को दिखा दिया कि सच्ची मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाती।

परिवार का सहयोग: सबसे मजबूत आधार

शक्ति दुबे बार-बार अपने माता-पिता के योगदान को स्वीकार करती हैं।
उनके पिता कहते हैं:

<span;>> “हमारा बस इतना ही योगदान है कि हमने उसकी जरूरतों को पूरा किया। लेकिन असली मेहनत तो शक्ति ने खुद की है।”

उनकी माँ, प्रेमा दुबे, अपनी बेटी की सफलता को भगवान महादेव की कृपा मानती हैं और कहती हैं:

<span;>> “शक्ति ने रात-दिन एक कर दिया था। दिल्ली में रहकर अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान केंद्रित किया। परिवार से दूर रहना आसान नहीं था, लेकिन उसने कभी शिकायत नहीं की।”

शक्ति दुबे बताती हैं कि जब भी निराशा आती थी, वे अपने माता-पिता से बातचीत करती थीं।
उनकी बातें सुनकर फिर से उत्साह से भर जाती थीं।

शक्ति का मंत्र: अनुशासन और निरंतरता

शक्ति दुबे के अनुसार सफलता के तीन मुख्य मंत्र हैं:

1. निरंतर पढ़ाई:

<span;>> “कोई भी दिन ऐसा नहीं था जब मैंने पढ़ाई न की हो। भले ही 4-5 घंटे ही क्यों न पढ़ पाऊँ।”

2. बाहर निकलकर दुनिया को देखना:

<span;>> “सीखो, अनुभव करो, धोखा खाओ, मजबूत बनो… तभी असली शक्ति आएगी। वरना घर में बैठे-बैठे जिंदगी बीत जाती है।”

3. आत्मविश्लेषण:

<span;>> “हर असफलता के बाद मैंने आत्ममंथन किया — कहाँ कमी रह गई, कैसे सुधार करूँ।”

*उनके ये विचार आज के युवाओं के लिए अमूल्य मार्गदर्शन हैं।*

महिलाओं की नई पहचान: शक्ति दुबे जैसे उदाहरण

यूपीएससी 2024 के परिणामों में महिलाओं ने जबरदस्त प्रदर्शन किया।
टॉप 25 में 11 महिलाएं और टॉप 5 में 3 महिलाएं रहीं।
यह दिखाता है कि भारत की बेटियाँ अब सिर्फ घर की चौखट तक सीमित नहीं हैं, वे आकाश को भी अपनी मुट्ठी में कैद कर रही हैं।

शक्ति दुबे का प्रथम स्थान इस बात का प्रमाण है कि यदि अवसर, सहयोग और आत्मविश्वास मिले, तो महिलाएँ हर क्षेत्र में इतिहास रच सकती हैं।

वर्तमान उपलब्धि और भविष्य की योजनाएँ

अब जब शक्ति दुबे भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी बन चुकी हैं, उनका लक्ष्य है:

-समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास की किरण पहुँचाना।
-महिलाओं के लिए शिक्षा और आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में काम करना।
-स्वास्थ्य, शिक्षा, और प्रशासनिक पारदर्शिता को मजबूती से बढ़ावा देना।

उनका सपना है कि वे भारत के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में भी बदलाव लाएँ, ताकि हर बच्चे को अवसर मिले, चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि से हो।

महिला सशक्तिकरण का संदेश
शक्ति दुबे की कहानी हमें यह सिखाती है कि:
असफलता अंत नहीं होती।
संघर्ष के बिना सफलता नहीं मिलती।
आत्मविश्वास और धैर्य सबसे बड़ी ताकत होती है।
महिलाएँ अब हर क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकती हैं, बशर्ते उन्हें अवसर और समर्थन मिले।

शब्दों के पीछे छिपी भावना
जब शक्ति दुबे कहती हैं:

<span;>> “I’m going to sleep peacefully tonight. For years, jo neend puri nahi hui, aaj usko pura karungi।”

तो यह सिर्फ एक वाक्य नहीं है — यह उन वर्षों की तपस्या, संघर्ष, आँसू और अनगिनत बलिदानों की पुकार है।
यह एक साधक की साधना की पूर्णता का उद्घोष है।

*“हर बेटी में है शक्ति”*

आज शक्ति दुबे जैसी बेटियाँ हमें याद दिलाती हैं कि हर लड़की में जन्म से शक्ति है।
जरूरत है — उसे सही मार्गदर्शन, समर्थन और अवसर देने की।

यदि हम प्रत्येक बेटी को उसका हक दें, उसे सपने देखने और उन्हें पूरा करने का अवसर दें — तो भारत के हर कोने से न जाने कितनी शक्ति दुबे निकलेंगी, जो भारत का भविष्य उज्ज्वल करेंगी।

शक्ति दुबे जी को कोटि-कोटि बधाइयाँ और शुभकामनाएँ!
उनकी यह यात्रा, यह प्रेरणा, आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर रहेगी।

*जय हिंद!*
*नारी शक्ति अमर रहे!*
*हर बेटी बने शक्ति!*

“लेखक: सुशील कुमार सुमन”
अध्यक्ष, आईओए
सेल आईएसपी बर्नपुर